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गभीरे कासारे विशति विजने घोरविपिने shlok ka arth

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गभीरे कासारे विशति विजने घोरविपिने विशाले शैले च भ्रमति कुसुमार्थं जडमतिः । समर्पैकं चेतः सरसिजमुमानाथ भवतो सुखेनावस्थातुम् जन इह न जानाति किमहो ।। शिवानन्द लहरी पूजा हेतु पुष्प के लिए, गहरी सरोवर, निर्जन अरण्य, विशाल पर्वत में घूमते हैं जो बुद्धि हीन हैं । ओ पार्वती पति जी, वो लोग खुद का मन का कमल फूल आपको समर्पित कर, सुख और चैन से रहना समझते नहीं । यह आश्चर्य कि बात है !  

एको धर्मः परमं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा श्लोक का अर्थ

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  विदुरनीतिः एको धर्मः परमं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा ।  विद्वैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा ॥ भावार्थ : - केवल धर्म मार्ग ही परम कल्याणकारी है, - केवल क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ट उपाय है, केवल ज्ञान ही परम संतोषकारी है तथा केवल अहिंसा ही सुख प्रदान करने वाली है । अतः इन गुणों का अनुसरण करना चाहिए।

धनिकः श्रोत्रियो राजा श्लोक का अर्थ

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 *धनिकः श्रोत्रियो राजा* *नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।* *पञ्च यत्र न विद्यन्ते* *न तत्र दिवसं वसेत॥* अर्थात - जहां कोई सेठ, वेदपाठी विद्वान, राजा, वैद्य और नदी न हो, इन पांच स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं श्लोक का अर्थ

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  *यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं*            *तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।*  *वासो यथा रङ्गवशं प्रयाति*             *तथा स तेषां वशमभ्युपैति।।* अर्थात - कपड़े को जिस रंग में रंगा जाए उस पर वैसा ही रंग चढ़ जाता है l इसी प्रकार सज्जन के साथ रहने पर सज्जनता, चोर के साथ रहने पर चोरी तथा तपस्वी के साथ रहने पर तपश्चर्या का रंग चढ़ जाता है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् श्लोक का अर्थ

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 *सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।* *प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् एषः धर्मः सनातनः॥* अर्थात- सत्य बोलना चाहिए किन्तु सभी को प्रिय लगने वाला सत्य ही बोलना चाहिए, उस सत्य को नही बोलना चाहिए जो सर्वजन के लिए हानिप्रद हो, (इसी प्रकार से) उस झूठ को भी नही बोलना चाहिए जो सर्वजन को प्रिय हो, यही सनातन धर्म है। *🙏💐🌻मङ्गलं सुप्रभातम्🌻💐🙏*

यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते, निर्घषणच्छेदन श्लोक का

 नीति - वचन यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते, निर्घषणच्छेदन तापताडनैः ।  तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते, त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥ घिसने, काटने, तापने और पीटने, इन चार प्रकारों से जैसे सोने का परीक्षण होता है, इसी प्रकार त्याग, शील, गुण, एवं कर्मों से पुरुष का परीक्षण होता है ।

नागपंचमी की मंगलकामनाएं

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  अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलम्। शंखपालं धार्तराष्ट्रम् तक्षकं कालियं तथा।। एतानि नवनामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।। तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।। मङ्गलं सुप्रभातम् *नागपंचमी की मंगलकामनाएँ*